Monday, May 2, 2011
ओसामा
मिलने मुझसे
भर के विमानों की टोलियाँ
बम बारूद गोलियां |
आज ढेर सारे दोस्तों ने
मार गिराया है मुझे
खून से लथपथ
पड़ा हूँ पथ पर |
ढेर सारे दोस्त
अब उठाएंगे मुझे
सलीब से सलीब
तक ले जायेंगे मुझे |
ढेर सारे दोस्त
कफ़न लायें हैं
शफ्फाक सुफेद
लिबास पहनूंगा |
दोस्त ढेर से मेरे
मेरी लाश ले
मुझे सैर कराएँगे
सबूत के तौर पर |
ढेर सारे दोस्त मेरे
कहेंगे फिर मारा गया
"ओसामा"
जश्न मनाया जाये |
ढेर सारे ओसामा
फिर पैदा होंगे
मेरे बाद
दोस्त बनने के लिए |
-ansh
Friday, October 15, 2010
विश्व वृद्ध दिवस
साहब चलिए मैं ले चलता हूँआपको मंदिर
छोटे साहब
आफिस जा रहे हैं |...आज मीटिंग रखी है |
साहब लेट जाइये
मैं बाम लगा देता हूँ
बहु जी
का फोन आया है |...शायद मायके से |
साहब बता दीजिये
कौन सी गोली देनी है
बेबी
जल्दी कॉलेज चली गईं |...पढ़ाई भी ज़रूरी है |
साहब सो जाइये
ग्यारह बज गए हैं
बाबा
पार्टी में गए हैं |...न जाने कब आयें |
साहब...
आज घर पे कोई नहीं है
मुगले आज़म देख लीजिये
मां जी को बहुत पसंद थी न.............|
Thursday, October 14, 2010
सियासतनामा
मुझ से पूछ
अब मैं ही बताऊंगा तुझे
शहर जागीर है मेरी
हर मोड़ नज़र आऊंगा तुझे |
तू हार गया
ये एहसास तो हो
तेरी चौखट पे
आ-आ के जताऊंगा तुझे |
तू चलेगा
मगर मेरे पीछे
कारवां मेरा है
तू गिरेगा तो उठाऊंगा तुझे |
मैं सियासत हूँ
तेरा नाम है मज़हब
तेरे ही मुल्क में
तेरी औकात दिखाऊंगा तुझे |
अंश-
Tuesday, July 13, 2010
गिरगिट
Tuesday, April 27, 2010
Friday, April 23, 2010
Wednesday, April 21, 2010
सपना
वो मेरा सपना था जिसे रखा था तुम्हारी गोद में....
अचानक किसी की आहट हुई और तुम दौड़ गए...
देखो सपना टूट के फर्श पे बिखर गया है...
समेट लो इसे नहीं तो चुभ जायेगा उसके पैरों में...
जब हम मिलेंगे काम के दौरान लौटा देना मुझे...
किसी कागज़ में लपेटकर सबसे छुपाकर ...
मैं जोड़ लूँगा उसे किसी तरह कुछ करके...
ये बात और है के शीशा जोड़ना मुश्किल है...
शीशे सा वो सपना मोम का होना था...
तुम तोड़ते रहते मैं जोड़ता रहता...
शायद रिश्तों की गर्माहट इसी काम आती...
पर अब ये गर्माहट झुलसा न दे मुझे....
Thursday, April 15, 2010
तुम
और हम यूँ ही बैठे रहे
बहुत देर तक
तुम स्क्रिप्ट में डूबी थीं
और मैं तुम्हारे हाथ से बनी चाय और नूडल्स में
तुम कहती हो
मैंने चाय और नूडल्स की तारीफ नहीं की
मैं तो देख रहा था बस तुमको
स्क्रिप्ट में डूबे हुए
अपने किरदार के करीब
तारीफ तुम्हारी है
मैं तो देख रहा था बस तुमको
अपलक एकटक अनथक
हाँ ये बात और है के
चाय और नूडल्स का जायका
अभी भी है होठों पे....
Tuesday, December 1, 2009
Monday, November 30, 2009
अभिनेता
अभिनेता का धर्म क्या है
अभिनेता का ईमान क्या है
अभिनेता का उसूल क्या है
अभिनेता - अभिनेता है
और कुछ नही
अभिनेता प्रेम कर सकता है
अभिनय मे
अभिनेता इर्ष्या कर सकता है
अभिनय मे
अभिनेता द्वेष कर सकता है
अभिनय मे
अभिनेता का जीना अभिनय है
अभिनेता का मरना अभिनय है
अभिनेता का जीवन ही अभिनय है
अभिनेता कितना सच - कितना झूट है
अभिनेता कितना कल कितना आज है
अभिनेता कितना निर्मल कितना निर्मम है
अभिनेता जीवित है कितना
अभिनेता मृत है कितना
अभिनेता मुर्चित है कितना
इन प्रश्नों का कोई जवाब नही
क्योंकि अभिनेता - अभिनेता है
और कुछ नही .........................मेरे शुभचिंतक
मेरे शुभचिंतक
रोज सिखाते हैं
मुझे जीने का तरीका
रोज देते हैं सलाह
कि करना क्या है
तुम भटक गए हो
अरे खुश क्यों हो
ऐसा मत करो
ये ग़लत है
वैसा मत करो
वो ग़लत है
तुम पछताओगे
गर्त मे जाओगे
देखो जमीन पर रहो
हमारी ही तरह दुख सहो
आसमान की और मत देखो
आगे बढ़ने की मत सोचो
हम तुम्हारा भला चाहते हैं
तुम्हे खुश देखना चाहते हैं
जो उन्हें पसंद है
करने को कहते हैं
रोज मर मर के
जीने को कहते हैं
पहचान
पहचानता हूँ
कुछ लोगों को.....
जिस शहर मे रहता हूँ
वहां कुछ लोगों को ...
हाँ ये बात और है
कि उन्हें जानता नही हूँ
पहचानता हूँ....
पहचानते हैं कुछ लोग
मुझे भी
इस शहर के
पर शायद जानते नही हैं
जिन कुछ लोगों को .....
मैं नही जानता हूँ
सिर्फ़ पहचानता हूँ
सूरत से - कद से
रंग से - पहचानता हूँ
कुछ लोगों को .....
जानना चाहता हूँ
जिन्हें पहचानता हूँ
पर डरता हूँ ....
जिस दिन जान गया ....
तो पहचान नही पाऊंगा ....
कुछ लोगों को ..........रोज
एक जिंदगी रोज जी लेता हूँ
रोज एक मौत होती है मेरी
रोज सुबह नींद खुलने पर
पैदा होता हूँ
रोज रात को थक कर
मर जाता हूँ
हर रोज एक जनम लेता हूँ
हर रोज
हर जनम सफल नही हो पाता
मेरा
फ़िर भी मैं पैदा होता हूँ
हर रोज
उस दिन की आस मे
जिस दिन
सुबह पैदा नही हो पाऊंगा
आखरी जन्म लेकर
मर जाऊँगा ....तब तक
एक जिंदगी रोज जिऊंगा
रोज एक मौत होगी मेरी ....तीस वर्ष का बच्चा....!
किसी काम से घर से
निकला बुढा
रास्ते मैं चलते हुए
एक पत्थर से टकराता है
गिर जाता है
तभी खोजता है
कोई सहारा
पर कुछ नजर नही आता
बस याद आता है
तीस वर्ष पूर्व सिखाना
चलना एक बच्चे को
वो बच्चा आज बड़ा हो गया है
दूर कहीं सिखा रहा है
किसी बच्चे को चलना
हाँ .....वो बच्चा फ़िर
सिखाएगा किसी बच्चे को चलना
अचानक .......ध्यान टूटता है
जैसे हाथ से कुछ छूटता है
बुढा उठता है चलने को होता है
अचानक एक ख्याल आता है
मैं तो उठ गया पर
मेरे बच्चे को कौन उठाएगा
जब उस का बच्चा
तीस वर्ष का हो जाएगा ?????कुछ देर के लिए मोह लेती हो तुम
मुझे
कुछ देर तुम्हारे साथ रहना पसंद है
मुझे
मुझे तम्हारी अदाओं ने लुभाया
कुछ देर
मुझे तुमने बांवरा सा बनाया
कुछ देर
लेकिन जैसे ही तुम गई
मैं भूल गया तुम्हे - तुम भूल गई मुझे
चका चौंध सी लगती थी
तुम शायद एक जशन थी
या थी कोई शराब
हो सके तो सामान्य सा दिन बनो
बनो एक साधारण सी शाम
ठंडे पानी का ग्लास बनो
वरना मैं हर बार तुम्हे भूल जाऊँगा
और तुम मुझे ...........उधेड़बुन
उधेड़ दिया
फ़िर सिया
फ़िर किसी ने उधेड़ दिया
किसी रददी के कागज से भी
बुरा सलून मेरे साथ है किया
मैं उधेड़ कर फ़िर से सिला गया
मैं अपनी पहचान
मेरा अपना लक्ष्य
मेरा अपना सपना
मेरा अपना अस्तित्व
इसी उधेड़बुन मे खो गया
बचपन खो गया
बालमन खो गया
उम्र से पहले ही
मैं बुढा हो गया
आज मेरा बुढ़ापा भी
एक उधेड़बुन हो गया .....गली........
ये वही गली है जहाँ से ....
तीन दिन पहले भी गुजरा था
और तीन साल पहले भी
गुजरुंगा शायद तीन महीने बाद भी
कभी एक सी क्यों नही लगती ये गली
गली मे मोहन का घर भी एक सा नही लगता
गली की तरह ही मिजाज बदलता रहता है
जिस तरह उस लड़की का दुपट्टा बदलता है
हर दिन
हर दिन बदलता दुपट्टा देखा करता हूँ
पर आपको कभी आँख भरकर नही देखा
नाम भी नही पता , जैसे मोहन का है पता
क्यों ?
मोहन की माँ पुकारती है
उस का घर पुकारता है
लीप पोत कर घर , हर हफ्ते नया सा हो जाता है
गली भी बारिस के बाद खूबसूरत हो जाती है
यहाँ पर हर घड़ी हर चीज बदल जाती है
बदलते नही हैं तो मोहन की पेशानी के बल
और दुपट्टे वाली लड़की की फटी हुई एडियाँ.........
आज कुछ नही लिख सकता......
आज कुछ नही लिख सकता
क्योंकि दिमाग नही चल रहा है
कवि जो मन मे बैठा है
कुछ सोचा नही पा रहा है
क्योंकि अब ताकत नही है
हौसला चुक गया है
अब तो शायद
कलम भी न उठ सकेगी
क्योंकि कुछ नही होता लिखने से
कितने लिख गए
मर गए खप गए
कुछ हुआ क्या ?
क्रांति नही आएगी
मेरी कविता
एक भी विचार
नही बदल पाएगी
सिर्फ़ पन्ने बर्बाद होंगे
कलम घिस जायेगी
फ़िर भी एक कविता
बन ही जाती है
क्योंकि उसकी सोच मे कविता
कविता मे सोच
नजर आती है
परंतू वो फ़िर कहता है
आज कुछ नही लिख सकता !Monday, November 23, 2009
जज्बातों के मसीहा
जज्बातों के मसीहा बने
कुछ दोस्त मिले कल रात
कुछ बहुत पुरानी यादें
ताज़ा कराने की कोशिश में
कुछ ख्वाब अधूरे
फिर से सजाना चाहते थे
झकझोरना चाहते थे
फिर मेरे जज्बातों को
मेरी भारी जेब ज्यादा देर
मुझे खड़ा न राख सकी वहां
मैं मुस्कुराया अपनी नाकामियों पर
और चल पड़ा उम्मीदों की ओर
जज्बातों के मसीहा शायद
डुबोना चाहते थे मुझे शराब में कल रात |...........ansh
Friday, November 13, 2009
Wednesday, November 11, 2009
नवम्बर...
this poetry is inspired by a famous saying of great Charlie Chaplin
नवम्बर की एक शाम से
बारिश होती रही
आसमान रोता रहा |
आसमान के आंसू
मेरे गालों पर गिरते
और चल देते ज़मीन की ओर
मेरे आंसुओं के साथ |
मैं रोता जाता हूँ
चलता जाता हूँ
रोते हुए मुझको
देख नहीं सकता कोई |
नवम्बर की एक शाम से
नवम्बर की एक रात तक
यादें आती रहीं
मैं रोता रहा |
Wednesday, September 2, 2009
Thursday, July 30, 2009
भोपाल के युवा रंगकर्मी अजय श्रीवास्तव अज्जू के निर्देशन में हेमलेट.... भारत भवन के अन्तरंग में शनिवार 25 जुलाई को शाम 7 बजे शेक्सपियर के इस बहुचर्चित नाटक को खेला भोपाल के रंग समूह "न्यासा" ने |
प्रस्तुत है इस नाटक की अरविन्द तिवारी द्वारा समीक्षा .......
अरविन्द.....पत्रकारिता,रंगकर्म और फिल्मों से लगातार जुड़े रहते हैं |
पढने के लिए नीचे क्लिक करें ...और अपने कमेंट्स देना न भूलें...
फिर मारा गया.... हेमलेट
alakh nandan community on orkut
He is one of the great Writer - Poet - Director of India
he is my Father
I request to join his community on Orkut
join as soon as possible...
click here to join
alakh nandan
Wednesday, July 29, 2009
kuch saathi aur......
इनके बारे में क्या कहूँ बस नाम ही काफी है....बड़े शायर/कवि है यार |
इनके कुछ .............कहाँ न बड़े लोगों के बारे में बात नहीं करते ॥
मेरे साथ ही रहती है तू घर क्यों नहीं जाती
बहुत प्यार आता है तुझपर तू मर क्यों नहीं जाती
तेरे बिना जीते नहीं बनता है तू बिछड़ क्यों नहीं जाती
मेरी बरबादियों को देख तू डर क्यों नही जाती
जब रात का साहिल थोडा सा सुख जाए और खामोशी थोडी सी गुनगुनाने लगे
यादें सारी मेरी आँखों मे भर जाए और आँखों से तुम्हारी पानी आने लगे
तब तुम आकर हौले से मेरा हाथ थाम लेना और कहना
ये आसमा तो पराया है मुझे तुम्हारी जमीन पे आना है
इनका ब्लॉग खंगालने के लिए नीचे क्लिक करें...
Tuesday, July 28, 2009
my new movie
MERI KAHANI
if u want to see full size image so plz click the thumbnails
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Sunday, July 26, 2009
जाने के बाद तुम्हारे
सब से छोटी रातें और सब से छोटे दिन
जाने के बाद तुम्हारे मेरे हैं - बस मेरे
सब से गन्दे दोस्त और सबसे बुरी आदतें
जाने के बाद तुम्हारे मेरी हैं - बस मेरी
सब कुछ खो कर जीने की ताकत और हौसला
जाने के बाद तुम्हारे मेरा है - बस मेरा
जाने के बाद तुम्हारे मैं
कठोर - कठिन चालाक - सयाना
और गैर का हो गया
जाने के बाद तुम्हारे जाना ये मैंने
सब से अच्छा था मैं जब मैं था तुम्हारा
पोंगा-भोंदू-लल्लू और तुम थे मेरे
जाने के बाद तुम्हारे
सब से गन्दी गालियाँ
और सारी बद्दुआएं
मेरी हैं - बस मेरी |
हमबिस्तर
Saturday, July 25, 2009
तुम्हारे बिना....
रहते जो तुम मेरे घर में मुझे कुछ आराम होता
कुछ सफ़ेद दुपट्टे...कुछ गीतों कि डायरी ...
एक जोड़ी कोल्हापुरी चप्पलें ..खुसरो कि शायरी
ज़रा तमीज़ होती मुझमे ...मैं यु फ़ैल के न सोता...
-अंश
एक तरफ सामान रखा ...
एक तरफ से खाली है...
वो जगह तुम्हारी है...
बेडौल ही रहेगा कमरा मेरा...
वो जगह कभी भरने नहीं दूंगा मैं...
वो जगह तुम्हारी है...
-अंश
दर्जी मुझसे बेहतर है.........
जिस दिन तुम ने नाप दिया था दर्जी को
सोचा था बनूँगा दर्जी
एक इंच टेप ले नापुन्गा
तुम्हारे दुःख
कैंची से काट डालूँगा
हर उस तकलीफ को
जो आंसू देती है तुम्हे
सुन्दर सलमा सितारे
जड़ दूंगा
तुम्हारे सादे रंग कि कुर्ती में
सिलूँगा खुशियों के धागे से
हर बंधन को
इजारबंद कि तरह
बांध दूंगा
साँसे
कमर के घेरे पे
खुद को बना दूंगा
तुम्हारा पटियाला सूट
जिस दिन तुमने नाप दिया था दर्जी को
उस दिन पहली दफा
देखा था मैंने
तुम्हारे चेहरे के सिवा
कुछ और
जिस दिन तुमने नाप दिया था दर्जी को
उस दिन मैंने जाना था
दर्जी मुझसे बेहतर है.........
-अंश पयान सिन्हा
आदतें
दिन भर सोचते हैं लिखना क्या है
यूँ दिन में भी याद नहीं करते उसको
और रातों को भी वो याद नहीं आती
लो फिर झूठ बोल दिया हमने
कमबख्त ये आदत क्यों नहीं जाती...
- अंश पयान सिन्हा
पतंग सा उड़ जाऊंगा....
बस यूँ ही !
ये मुझे नहीं मालूम
मेरी जीने की अदा को
शायद
तुम ने कोई नाम दिया है .........-अंश
मुझे उस तस्वीर से
बे इन्तेहाँ मुहब्बत है...
क्योंकि उस तस्वीर में बस
तू ही नजर आया है मुझे
-अंश पयान सिन्हा
दर्द को बना के तांगा
तू कहीं दूर निकल जा
थक के जो मरा घोड़ा
तो दर्द भी मर जायेगा
-अंश पयान सिन्हा
मुझे उस तस्वीर से बे इन्तेहाँ मुहब्बत है...
क्योंकि उस तस्वीर में बस तू ही नजर आया है मुझे -अंश पयान सिन्हा
तू तस्वीर को दाएँ तरफ से तो देख
इसमें भी कई खूबियाँ हैं तू देख पायेगा...अंश पयान सिन्हा
मैं उन सब का शुक्रगुजार सा हूँ...
जिन अपनों ने बर्बाद कर के मुझे...
जीना सिखा दिया-
अंश पयान सिन्हा
माना के इल्म बहुत खूब है तुम्हे..
मेरी भी सुन लिया करो...मेरी उम्र बड़ी है..
अंश पयान सिन्हा