Monday, November 30, 2009




अभिनेता

अभिनेता का धर्म क्या है

अभिनेता का ईमान क्या है

अभिनेता का उसूल क्या है

अभिनेता - अभिनेता है

और कुछ नही

अभिनेता प्रेम कर सकता है

अभिनय मे

अभिनेता इर्ष्या कर सकता है

अभिनय मे

अभिनेता द्वेष कर सकता है

अभिनय मे

अभिनेता का जीना अभिनय है

अभिनेता का मरना अभिनय है

अभिनेता का जीवन ही अभिनय है

अभिनेता कितना सच - कितना झूट है

अभिनेता कितना कल कितना आज है

अभिनेता कितना निर्मल कितना निर्मम है

अभिनेता जीवित है कितना

अभिनेता मृत है कितना

अभिनेता मुर्चित है कितना

इन प्रश्नों का कोई जवाब नही

क्योंकि अभिनेता - अभिनेता है

और कुछ नही .........................

क्यों तोड़ देता हूँ

कुछ सामन तोड़ देता हूँ

फ़िर बैठकर देर तक रोता हूँ

फ़िर कोशिश करता हूँ

उसे जोड़ने की

कभी सफल हो जाता हूँ

कभी होता हूं असफल

कभी ले कर उसे

घंटो बैठा रहता हूँ

पर हर बात यही सोचता हूँ

कि जब जोड़ना ही है

रो रो कर कुछ सामान

तो क्यों तोड़ देता हूँ ?

मेरे शुभचिंतक

मेरे शुभचिंतक

रोज सिखाते हैं

मुझे जीने का तरीका

रोज देते हैं सलाह

कि करना क्या है

तुम भटक गए हो

अरे खुश क्यों हो

ऐसा मत करो

ये ग़लत है

वैसा मत करो

वो ग़लत है

तुम पछताओगे

गर्त मे जाओगे

देखो जमीन पर रहो

हमारी ही तरह दुख सहो

आसमान की और मत देखो

आगे बढ़ने की मत सोचो

हम तुम्हारा भला चाहते हैं

तुम्हे खुश देखना चाहते हैं

जो उन्हें पसंद है

करने को कहते हैं

रोज मर मर के

जीने को कहते हैं

मेरे शुभचिंतक ..........

पहचान

पहचानता हूँ

कुछ लोगों को.....

जिस शहर मे रहता हूँ

वहां कुछ लोगों को ...

हाँ ये बात और है

कि उन्हें जानता नही हूँ

पहचानता हूँ....

पहचानते हैं कुछ लोग

मुझे भी

इस शहर के

पर शायद जानते नही हैं

जिन कुछ लोगों को .....

मैं नही जानता हूँ

सिर्फ़ पहचानता हूँ

सूरत से - कद से

रंग से - पहचानता हूँ

कुछ लोगों को .....

जानना चाहता हूँ

जिन्हें पहचानता हूँ

पर डरता हूँ ....

जिस दिन जान गया ....

तो पहचान नही पाऊंगा ....

कुछ लोगों को ..........

रोज

एक जिंदगी रोज जी लेता हूँ

रोज एक मौत होती है मेरी

रोज सुबह नींद खुलने पर

पैदा होता हूँ

रोज रात को थक कर

मर जाता हूँ

हर रोज एक जनम लेता हूँ

हर रोज

हर जनम सफल नही हो पाता

मेरा

फ़िर भी मैं पैदा होता हूँ

हर रोज

उस दिन की आस मे

जिस दिन

सुबह पैदा नही हो पाऊंगा

आखरी जन्म लेकर

मर जाऊँगा ....तब तक

एक जिंदगी रोज जिऊंगा

रोज एक मौत होगी मेरी ....

तीस वर्ष का बच्चा....!


किसी काम से घर से

निकला बुढा

रास्ते मैं चलते हुए

एक पत्थर से टकराता है

गिर जाता है

तभी खोजता है

कोई सहारा

पर कुछ नजर नही आता

बस याद आता है

तीस वर्ष पूर्व सिखाना

चलना एक बच्चे को

वो बच्चा आज बड़ा हो गया है

दूर कहीं सिखा रहा है

किसी बच्चे को चलना

हाँ .....वो बच्चा फ़िर

सिखाएगा किसी बच्चे को चलना

अचानक .......ध्यान टूटता है

जैसे हाथ से कुछ छूटता है

बुढा उठता है चलने को होता है

अचानक एक ख्याल आता है

मैं तो उठ गया पर

मेरे बच्चे को कौन उठाएगा

जब उस का बच्चा

तीस वर्ष का हो जाएगा ?????
कुछ देर के लिए....बस !

कुछ देर के लिए मोह लेती हो तुम

मुझे

कुछ देर तुम्हारे साथ रहना पसंद है

मुझे

मुझे तम्हारी अदाओं ने लुभाया

कुछ देर

मुझे तुमने बांवरा सा बनाया

कुछ देर

लेकिन जैसे ही तुम गई

मैं भूल गया तुम्हे - तुम भूल गई मुझे

चका चौंध सी लगती थी

तुम शायद एक जशन थी

या थी कोई शराब

हो सके तो सामान्य सा दिन बनो

बनो एक साधारण सी शाम

ठंडे पानी का ग्लास बनो

वरना मैं हर बार तुम्हे भूल जाऊँगा

और तुम मुझे ...........

उधेड़बुन

उधेड़ दिया

फ़िर सिया

फ़िर किसी ने उधेड़ दिया

किसी रददी के कागज से भी

बुरा सलून मेरे साथ है किया

मैं उधेड़ कर फ़िर से सिला गया

मैं अपनी पहचान

मेरा अपना लक्ष्य

मेरा अपना सपना

मेरा अपना अस्तित्व

इसी उधेड़बुन मे खो गया

बचपन खो गया

बालमन खो गया

उम्र से पहले ही

मैं बुढा हो गया

आज मेरा बुढ़ापा भी

एक उधेड़बुन हो गया .....

गली........

ये वही गली है जहाँ से ....

तीन दिन पहले भी गुजरा था

और तीन साल पहले भी

गुजरुंगा शायद तीन महीने बाद भी

कभी एक सी क्यों नही लगती ये गली

गली मे मोहन का घर भी एक सा नही लगता

गली की तरह ही मिजाज बदलता रहता है

जिस तरह उस लड़की का दुपट्टा बदलता है

हर दिन

हर दिन बदलता दुपट्टा देखा करता हूँ

पर आपको कभी आँख भरकर नही देखा

नाम भी नही पता , जैसे मोहन का है पता

क्यों ?

मोहन की माँ पुकारती है

उस का घर पुकारता है

लीप पोत कर घर , हर हफ्ते नया सा हो जाता है

गली भी बारिस के बाद खूबसूरत हो जाती है

यहाँ पर हर घड़ी हर चीज बदल जाती है

बदलते नही हैं तो मोहन की पेशानी के बल

और दुपट्टे वाली लड़की की फटी हुई एडियाँ.........


आज कुछ नही लिख सकता......


आज कुछ नही लिख सकता

क्योंकि दिमाग नही चल रहा है

कवि जो मन मे बैठा है

कुछ सोचा नही पा रहा है

क्योंकि अब ताकत नही है

हौसला चुक गया है

अब तो शायद

कलम भी न उठ सकेगी

क्योंकि कुछ नही होता लिखने से

कितने लिख गए

मर गए खप गए

कुछ हुआ क्या ?

क्रांति नही आएगी

मेरी कविता

एक भी विचार

नही बदल पाएगी

सिर्फ़ पन्ने बर्बाद होंगे

कलम घिस जायेगी

फ़िर भी एक कविता

बन ही जाती है

क्योंकि उसकी सोच मे कविता

कविता मे सोच

नजर आती है

परंतू वो फ़िर कहता है

आज कुछ नही लिख सकता !