Monday, November 30, 2009

मेरे शुभचिंतक

मेरे शुभचिंतक

रोज सिखाते हैं

मुझे जीने का तरीका

रोज देते हैं सलाह

कि करना क्या है

तुम भटक गए हो

अरे खुश क्यों हो

ऐसा मत करो

ये ग़लत है

वैसा मत करो

वो ग़लत है

तुम पछताओगे

गर्त मे जाओगे

देखो जमीन पर रहो

हमारी ही तरह दुख सहो

आसमान की और मत देखो

आगे बढ़ने की मत सोचो

हम तुम्हारा भला चाहते हैं

तुम्हे खुश देखना चाहते हैं

जो उन्हें पसंद है

करने को कहते हैं

रोज मर मर के

जीने को कहते हैं

मेरे शुभचिंतक ..........

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