Monday, November 23, 2009


मुश्किल

रात भर कमरे के पर्दे बदला किये
रात भर खुद को कई पोशाकों में देखा

जंचता नहीं कोई पर्दा अब
कोई पोषक भी नहीं फबती अब तो

रात भर अब रंगूंगा दीवारें
रात भर सजाऊंगा फिर कमरा

अब भी न बदला कुछ तो
सुबह खुद को बदल दूंगा

सब कहते हैं यही आसान रास्ता है
और यही सबसे मुश्किल है मेरे लिए..............अंश


जज्बातों के मसीहा

जज्बातों के मसीहा बने
कुछ दोस्त मिले कल रात

कुछ बहुत पुरानी यादें
ताज़ा कराने की कोशिश में

कुछ ख्वाब अधूरे
फिर से सजाना चाहते थे

झकझोरना चाहते थे
फिर मेरे जज्बातों को

मेरी भारी जेब ज्यादा देर
मुझे खड़ा न राख सकी वहां

मैं मुस्कुराया अपनी नाकामियों पर
और चल पड़ा उम्मीदों की ओर

जज्बातों के मसीहा शायद
डुबोना चाहते थे मुझे शराब में कल रात |...........ansh