Monday, November 23, 2009



जज्बातों के मसीहा

जज्बातों के मसीहा बने
कुछ दोस्त मिले कल रात

कुछ बहुत पुरानी यादें
ताज़ा कराने की कोशिश में

कुछ ख्वाब अधूरे
फिर से सजाना चाहते थे

झकझोरना चाहते थे
फिर मेरे जज्बातों को

मेरी भारी जेब ज्यादा देर
मुझे खड़ा न राख सकी वहां

मैं मुस्कुराया अपनी नाकामियों पर
और चल पड़ा उम्मीदों की ओर

जज्बातों के मसीहा शायद
डुबोना चाहते थे मुझे शराब में कल रात |...........ansh

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