Monday, November 30, 2009


उधेड़बुन

उधेड़ दिया

फ़िर सिया

फ़िर किसी ने उधेड़ दिया

किसी रददी के कागज से भी

बुरा सलून मेरे साथ है किया

मैं उधेड़ कर फ़िर से सिला गया

मैं अपनी पहचान

मेरा अपना लक्ष्य

मेरा अपना सपना

मेरा अपना अस्तित्व

इसी उधेड़बुन मे खो गया

बचपन खो गया

बालमन खो गया

उम्र से पहले ही

मैं बुढा हो गया

आज मेरा बुढ़ापा भी

एक उधेड़बुन हो गया .....

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