वो मेरा सपना था जिसे रखा था तुम्हारी गोद में....
अचानक किसी की आहट हुई और तुम दौड़ गए...
देखो सपना टूट के फर्श पे बिखर गया है...
समेट लो इसे नहीं तो चुभ जायेगा उसके पैरों में...
जब हम मिलेंगे काम के दौरान लौटा देना मुझे...
किसी कागज़ में लपेटकर सबसे छुपाकर ...
मैं जोड़ लूँगा उसे किसी तरह कुछ करके...
ये बात और है के शीशा जोड़ना मुश्किल है...
शीशे सा वो सपना मोम का होना था...
तुम तोड़ते रहते मैं जोड़ता रहता...
शायद रिश्तों की गर्माहट इसी काम आती...
पर अब ये गर्माहट झुलसा न दे मुझे....
शीशे सा वो सपना मोम का होना था...
ReplyDeleteतुम तोड़ते रहते मैं जोड़ता रहता...
waah! kamal ka likha hai !
thanx nilesh
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